मंदिर और वास्तुकला/ Temples and Architecture
Temples and Architecture मंदिर और वास्तुकला की भारतीय शैलियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की है। यह बहुत मूल्यवान है। मैं इसे निम्नलिखित बिंदुओं में संक्षेप में प्रस्तुत करूंगा:
नागर या उत्तर भारतीय शैली:
- गर्भगृह, जगमोहन, नाट्यमंदिर और भोगमंदिर जैसे मुख्य घटक
- शिखर अमलका और कलश से सजा
- शिखर शैलियां: रेखा-प्रसाद/लैटिना, वल्लभी और फामसाना
उदाहरण: खजुराहो के मंदिर, कोणार्क सूर्य मंदिर, श्री जगन्नाथ मंदिर पुरी में।
द्रविड़ या दक्षिण भारतीय शैली:
- पिरामिड के आकार के शिखर
- गोपुरम (प्रवेश द्वार)
- विशाल अलंकृत अग्रभाग और प्रांगण
- स्तंभगृह और मंडप
उदाहरण: तंजौर ब्रह्मदेशीय मंदिर, मीनाक्षी मंदिर मदुरै में, रामेश्वरम मंदिर।
वेसर शैली:
- खोखले और सतही मूर्तिकरण
- झरोखे, जालीदार कार्य
- लकड़ी का व्यापक उपयोग
उदाहरण: पूर्वी और पश्चिमी घाटों में मंदिर।
नागर शैली की वास्तुकला
मंदिरों में चार कक्ष हैं: गर्भगृह, जगमोहन, नाट्यमंदिर और भोगमंदिर।
परिसर दो इमारतों से बना है: मुख्य मंदिर, जो लंबा है, और उससे सटा एक छोटा मंडप है।
हिंदू मंदिर के मूल घटक निम्नलिखित हैं:
प्रसिद्ध मंदिर और नागर शैली की वास्तुकला के घटकों की विस्तृत परिभाषा:
गर्भगृह (गर्भगृहा) गर्भगृह मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र भाग है। यह एक गुफा जैसा छोटा कक्ष होता है जिसमें मुख्य देवता की मूर्ति स्थापित की जाती है। इसका केवल एक प्रवेश द्वार होता है। बाद के समय में गर्भगृह बड़े आकार का बन गया।
शिखर शिखर गर्भगृह के ऊपर बने टावर जैसे ढांचे को कहा जाता है। इसे घुमावदार आकार दिया जाता है और शीर्ष पर अमलका और कलश से सजाया जाता है। मुख्य शिखर की आकृति घंटी के आकार की होती है।
मंडप मंडप एक खंभों वाला हॉल या बरामदा होता है जो गर्भगृह तक पहुंचने का रास्ता प्रदान करता है। इसमें एक या अधिक प्रवेश द्वार होते हैं। अर्धमंडप, मंडप और महामंडप इसके तीन प्रकार हैं।
अमलका अमलका शिखर के शीर्ष पर रखी जाने वाली डिस्क या चक्र जैसी पत्थर की संरचना है।
कलश कलश शिखर का सर्वोच्च शिखर होता है जो अमलका के ऊपर स्थित होता है। यह शिखर का मुकुट होता है।
अंतराला अंतराला गर्भगृह और मंडप के बीच स्थित एक विशेष कक्ष होता है।
जगती जगती उत्तर भारतीय मंदिरों में मिलने वाला एक उठा हुआ मंच होता है जहां भक्त बैठकर पूजा कर सकते हैं।
वाहन वाहन मूर्ति मुख्य देवता के वाहन या सवारी का प्रतिनिधित्व करती है और इसे गर्भगृह के सामने अक्षीय रूप से रखा जाता है।
नागर शिखर शैलियां: Temples and Architecture
रेखा-प्रसाद या लैटिना शिखर यह सबसे आम शिखर शैली है जिसमें शिखर का आधार वर्गाकार होता है और दीवारें ऊपर की ओर एक बिंदु पर मिलती हैं। इसे लैटिना या रेखा-प्रसाद कहा जाता है।
वल्लभी शिखर इस शैली के मंदिर आयताकार आकार के होते हैं और इनकी छत बैरल-वॉल्टेड होती है।
फामसाना शिखर इसमें कई स्लैब वाली छतें होती हैं जो मध्य बिंदु पर एक पिरामिड की तरह एक सीधी ढलान पर क्रमिक रूप से ऊपर की ओर चढ़ती हैं।
नागर शैली के प्रमुख मंदिरों की परिभाषा:
कंदारिया महादेव मंदिर यह खजुराहो समूह के मंदिरों में सबसे बड़ा और सबसे भव्य मंदिर है। चंदेल शासक धनगदेव द्वारा 1025-1050 ईस्वी के बीच बनवाया गया। नागर शैली में निर्मित, यह शिव को समर्पित है और भारी मूर्तिकला से सुशोभित है। 1986 में इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
कोणार्क सूर्य मंदिर ओडिशा के पुरी में स्थित, यह भगवान सूर्य को समर्पित एक भव्य मंदिर है। गंग वंशीय शासक नरसिंहदेव प्रथम द्वारा 1250 ईस्वी में बनवाया गया, यह कलिंग शैली का एक उत्कृष्ट नमूना है। “ब्लैक पेगोडा” के नाम से भी जाना जाता है, यह 1984 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
खजुराहो समूह स्मारक छतरपुर जिले, मध्य प्रदेश में स्थित, यह हिंदू और जैन मंदिरों का एक समूह है जिन्हें चंदेल शासकों द्वारा 950-1050 ईस्वी के बीच नागर शैली में बनवाया गया था। उनकी अद्वितीय मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध, वे 1986 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किए गए थे।
श्री राधा मदन मोहन मंदिर वृंदावन, उत्तर प्रदेश में स्थित यह भगवान कृष्ण को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। मूल रूप से 16वीं शताब्दी में बनाया गया, यह नागर शैली का एक उदाहरण है और यमुना नदी के तट पर स्थित है।
मारकंडेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में वैनगंगा नदी के तट पर स्थित, यह एक नागर शैली का मंदिर है जिसे “विदर्भ के खजुराहो” के रूप में भी जाना जाता है। यह मंदिर शैव, वैष्णव और शाक्त धर्मों से जुड़ा है।
मुक्तेश्वर मंदिर भुवनेश्वर, ओडिशा में स्थित, यह 10वीं शताब्दी का शिव को समर्पित एक नागर शैली मंदिर है। सोमवंशी शासक ययाति प्रथम द्वारा बनवाया गया, इसका नाम “स्वतंत्रता का देवता” से आता है।
केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में स्थित, यह शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। आदि शंकराचार्य द्वारा 8वीं शताब्दी में स्थापित, यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। नागर शैली में बना, यह केवल गर्मियों के महीनों में खुला रहता है।
द्रविड़ या दक्षिण भारतीय शैली की वास्तुकला की विशेषताएं और घटक:
परिसर और गोपुरम द्रविड़ मंदिर एक संयुक्त परिसर के भीतर स्थित होते हैं, जिसका प्रवेश द्वार गोपुरम कहलाता है। गोपुरम एक भव्य और अलंकृत मंदिर प्रवेशद्वार है जिसके ऊपर कलश होता है।
विमान मुख्य मंदिर का टॉवर विमान कहलाता है। यह एक सीढ़ीदार पिरामिड के आकार का होता है और ऊंचाई पर बढ़ता जाता है। इसकी तुलना उत्तर भारतीय शिखरों की घुमावदार आकृति से की जाती है।
अग्रभाग और मंडप मंदिर परिसर में एक विशाल अग्रभाग (courtyard) और स्तंभगृह या मंडप होता है।
उपमंदिर कई बार मुख्य मंदिर के आसपास छोटे उपमंदिर भी होते हैं।
जलाशय परिसर के भीतर एक बड़ा जलाशय या मंदिर की टंकी होना आम बात है।
द्रविड़ मंदिर आकृतियां द्रविड़ मंदिरों को मुख्य रूप से पांच आकृतियों में वर्गीकृत किया गया है:
- वर्ग/चतुरस्र (कूट)
- आयताकार (शाला/आयतस्र)
- अंडाकार (गज-पृष्ठ/वृतायत/नसी)
- वृत्ताकार (वृत्त)
- अष्टकोणीय (अष्टाश्र)
द्रविड़ शैली की प्रमुख विशेषताएं विमान टॉवर, गोपुरम प्रवेशद्वार और विशाल परिसर हैं। यह शैली दक्षिण भारतीय राज्यों में विशेष रूप से प्रचलित थी।
द्रविड़ शैली के प्रमुख मंदिरों की विस्तृत परिभाषा:
महाबलेश्वर मंदिर गोकर्ण, कर्नाटक में स्थित यह 4वीं शताब्दी का प्राचीन मंदिर शास्त्रीय द्रविड़ शैली में बनाया गया है और शिव को समर्पित है। यह द्रविड़ वास्तुकला का एक जीवंत उदाहरण है।
कपालेश्वर मंदिर मायलापुर, तमिलनाडु में स्थित, यह 7वीं शताब्दी का मंदिर शिव को कपालेश्वर के रूप में समर्पित है। इसकी अद्वितीय द्रविड़ शैली की वास्तुकला वैष्णव और शैव प्रभावों को दर्शाती है।
राजराजेश्वर मंदिर तलिपरम्बा, केरल में स्थित, इस शिव मंदिर का निर्माण भगवान परशुराम द्वारा कराया गया था। यह क्लासिक द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है।
शोर मंदिर महाबलीपुरम, तमिलनाडु में 8वीं शताब्दी का यह ग्रेनाइट मंदिर पल्लव शासकों द्वारा द्रविड़ शैली में बनवाया गया था। यह पुराने समुद्री बंदरगाह शहर का हिस्सा था।
ऐरावतेश्वर मंदिर कुंभकोणम, तमिलनाडु में स्थित, यह 12वीं शताब्दी का शिव मंदिर चोल शासक राजराजा द्वितीय द्वारा बनवाया गया था। यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त।
बृहदीश्वर मंदिर (राजाराजेश्वरम) तंजावुर में स्थित, यह चोल शासक राजराजा प्रथम द्वारा 1003-1010 ईस्वी के बीच बनवाया गया शिव मंदिर द्रविड़ शैली का एक शानदार उदाहरण है। यह “महान जीवित चोल मंदिरों” में से एक है और 1987 से विश्व धरोहर स्थल है।
कैलाश मंदिर एलोरा, महाराष्ट्र की चट्टानी गुफाओं में बना यह विशाल शिव मंदिर 8वीं शताब्दी के राष्ट्रकूट शासक कृष्ण प्रथम द्वारा खुदवाया गया था। यह पल्लव और चालुक्य शैलियों का मिश्रण दिखाता है।
आदि कुम्बेश्वर मंदिर कुंभकोणम, तमिलनाडु में स्थित, यह 9वीं शताब्दी का शिव मंदिर चोल शासकों द्वारा बनवाया गया था। मंदिर भगवान शिव को आदि कुम्बेश्वर के रूप में समर्पित है।
विरुपाक्ष मंदिर हम्पी, कर्नाटक में स्थित, इस शिव मंदिर का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के दौरान 14वीं शताब्दी में रानी लोकमहादेवी द्वारा कराया गया था। यह विश्व धरोहर स्थल हम्पी के स्मारकों का हिस्सा है।
इन मंदिरों ने द्रविड़ वास्तुकला की समृद्ध परंपरा और विविधता को दिखाया है। उनकी भव्य आकृतियाँ, विमान टॉवर, गोपुरम द्वार और विशाल अग्रभाग इस शैली की पहचान हैं।
मुन्नेश्वरम मंदिर, श्रीलंका
मुन्नेश्वरम मंदिर श्रीलंका का एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है जो रामायण काल से जुड़ा है। इसकी स्थापना कोट्टे साम्राज्य के राजा पराक्रमा बाहु VI (1412/1415–1467) ने की थी।
इरावतनेश्वर मंदिर, तमिलनाडु
इरावतनेश्वर मंदिर (श्री जुराहरेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है) भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है जो तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित है। इसका निर्माण पल्लव राजा नरसिंहवर्मन द्वितीय ने करवाया था।
ब्रह्मपुरीश्वरर मंदिर, तमिलनाडु
ब्रह्मपुरीश्वरर मंदिर तमिलनाडु का एक प्रख्यात हिंदू मंदिर है।
तमिलनाडु के अन्य प्रमुख मंदिर
मीनाक्षी मंदिर, रामेश्वरम मंदिर, कुमारी अम्मन मंदिर, नागनाथस्वामी मंदिर, बृहदेश्वर मंदिर, कपालेश्वर मंदिर, नटराज मंदिर, अरुणाचलेश्वर मंदिर, एकम्बरेश्वर, महाबलीपुरम शौर्य स्मारक आदि।
श्रीकालहस्ती मंदिर, आंध्र प्रदेश
श्रीकालहस्ती मंदिर आंध्र प्रदेश के तिरुपति जिले में स्थित है और यह शिव को समर्पित है। यह ग्रहण के दौरान खुला रहने वाला भारत का एकमात्र मंदिर है। इसमें राहु-केतु की पूजा की जाती है और यहां शिव को वायु के रूप में कालहस्तीश्वर के नाम से पूजा जाता है।
वेसर शैली की वास्तुकला
- वेसर शैली की मुख्य विशेषताएं:
- मंडप और विमान पर जोर
- तारकीय योजना (stellate plan) का भू-चित्र
- एक खुला चलने वाला मार्ग
- ऊंचा मंच आधार
- स्तंभों, दरवाजों और छतों पर जटिल नक्काशी
- प्रमुख वेसर शैली के मंदिर:
- चेन्नाकेशव मंदिर
- विरुपाक्ष मंदिर
- लाड खान मंदिर
- वेसर शैली की उत्पत्ति कर्नाटक में हुई थी और कल्याणी के चालुक्य, होयसाल आदि ने इसे विकसित किया।
बादामी गुफा मंदिर, कर्नाटक
बादामी गुफा मंदिर कर्नाटक में स्थित हिंदू और जैन गुफा मंदिरों का एक प्रसिद्ध परिसर है। ये गुफाएं बादामी चालुक्य वास्तुकला शैली के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इनका निर्माण मंगलेश ने करवाया था।
रुद्रेश्वर मंदिर, तेलंगाना
रुद्रेश्वर मंदिर का निर्माण 1213 ई. में काकतीय शासक गणपति देव के सेनापति रेचेरला रुद्र द्वारा करवाया गया था। इसके मुख्य देवता रामलिंगेश्वर हैं। इसे रामप्पा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह जटिल नक्काशी वाले खंभों और छत से सुशोभित है जो काकतीय मूर्तिकारों की प्रतिभा का प्रमाण है।