मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ/ Muhavren Evm Lokoktiyan
मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ/ Muhavren Evm Lokoktiyan
कुछ महत्त्वपूर्ण मुहावरे एवं उनके वाक्यों में प्रयोग
101. कान खाना-निरन्तर बातें करके परेशान करना।
यद्यपि उस समय उसकी बात सुनने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी, तथापि उसने मेरे कान खाकर मुझे परेशान कर दिया।
102. कान पर जूं न रेंगना-~-बार-बार कहने पर भी प्रभाव न होना।
अब अनुत्तीर्ण हो जाने पर क्यों रोते हो? जब मैं पढ़ने के लिए बार-बार कहता था, तब तुम्हारे कानों पर जूं भी न रेंगती थी।
103. कान भरना-चुगली करना।
मोहन ने सोहन से कहा कि आज साहब नाराज हैं, किसी ने उनके कान भरे हैं।
104. काया पलट देना-स्वरूप में आमूल परिवर्तन कर देना।
आपास्थिति ने तो देश की काया ही पलट दी।
105. काला अक्षर भैंस बराबर—बिल्कुल अनपढ़।
संगीत के विषय में मेरी स्थिति काला अक्षर भैंस बराबर है।
106. कीचड़ उछालना-लांछन लगाना।
कुछ लोगों को दूसरों पर कीचड़ उछालने में मजा आता है।
107. कुएँ में भाँग पड़ना-सम्पूर्ण समूह परिवार. का दूषित प्रवृत्ति का होना।
जब घर से भागकर प्रेम-विवाह करनेवाली साधना की दूसरी बेटी भी घर से भाग गई तो सभी सुननेवालों ने यही कहा कि वहाँ तो कुएँ में ही भाँग पड़ी है।
108. कुएँ में बाँस डालना-बहुत तलाश करना।
कई दिन से कुएँ में बाँस डाल रखे हैं, किन्तु उनका मिलना तो दूर उनका कोई समाचार भी नहीं मिला है।
109. कुत्ते की मौत मरना-बुरी तरह मरना।
तस्कर व डाकू जब पुलिस के चंगुल में पड़ जाते हैं तो कुत्ते की मौत मारे जाते हैं।
110. कूप-मण्डूक होना-संकुचित विचारवाला होना।
समुद्र पार करने का निषेध करके हमारे पुरखों ने हमें कूप-मण्डूक बना रहने दिया।
111. कोयले की दलाली में हाथ काले-कुसंगति से कलंक अवश्य लगता है।
अपने मातहत दो बाबुओं को रंगे हाथ रिश्वत लेते पकड़े जाने के आरोप में अजब सिंह को भी उनके पद से हटा दिया गया। आखिर कोयले की दलाली में हाथ काले होते ही हैं।
112. कोल्हू का बैल-अत्यन्त परिश्रमी।
मजदूर रात-दिन कोल्हू के बैल की तरह जुटे रहने पर भी भरपेट रोटी प्राप्त नहीं कर पाते।
113. खटाई में डालना-उलझन पैदा करना।
मेरे मामले का निर्णय अभी तक नहीं हुआ, लिपिक महोदय ने जान-बूझकर उसे खटाई में डाल दिया है।
114. खरी-खोटी सुनाना-फटकारना।
अध्यापक द्वारा खरी-खोटी सुनाने पर भी निर्लज्ज छात्र पर कोई प्रभाव न पड़ा।
115. खरी मजूरी चोखा काम–अच्छी मजदूरी लेनेवाले से अच्छे काम की ही अपेक्षा की जाती है।
रोजगार की तलाश में शहर जाते बेटे को समझाते हुए पिता ने कहा कि छोटे शहर में खरी मजूरी चोखा काम चाहनेवालों की कमी नहीं है।
116. खाक छानना-भटकना।
मेरा शोध-विषय इतना जटिल है कि इसके लिए मुझे दर-दर की खाक छाननी पड़ रही है।
117. खाक में मिलाना-नष्ट करना।
अयोग्य सन्तान अपने पिता की इज्जत को तनिक-सी देर में खाक में मिला देती है।
118. खून का प्यासा होना-जानी दुश्मन होना।
जब सरदार भगतसिंह ने लाला लाजपतराय की मृत्यु का समाचार सुना तो वे अंग्रेजों के खून के प्यासे हो गए।
119. खून सूख जाना—भयभीत होना।
रमेश अपने पिता से बिना कहे सिनेमा देखने चला गया। सिनेमाहाल पर अचानक अपने पिता को देखकर उसका खून सूख गया।
120. खून सफेद होना—उत्साह का समाप्त हो जाना, बहुत डर जाना।
अपने सामने एक बहुत ही भयानक चेहरे के व्यक्ति को खड़ा देखकर मानो उसका खून सफेद हो गया।
121. खून-पसीना एक करना-कठोर परिश्रम करना।
मुकेश ने परीक्षा में सफलता पाने के लिए खून-पसीना एक कर दिया।
122. खेल खिलाना-प्रतिपक्षी को समय देना।
राम ने रावण को मारने से पूर्व युद्ध के मैदान में उसे तरह-तरह से खेल खिलाए।
123. खेत रहना-लड़ाई में मारा जाना।
भारत और चीन के युद्ध में शत्रुओं के कई हजार सैनिक खेत रहे।
124. गड़े मुर्दे उखाड़ना-बहुत पुरानी बात दोहराना।
गड़े मुर्दे उखाड़ने से किसी समस्या का हल नहीं मिलता। वस्तुतः हमें वर्तमान सन्दर्भ में ही समस्या का समाधान खोजना चाहिए।
125. गागर में सागर भरना-थोड़े शब्दों में अधिक बात कहना।
बिहारी ने अपनी सतसई के दोहों में बड़े-बड़े अर्थ रखकर गागर में सागर भरने की बात को चरितार्थ किया।
126. गाल बजाना-डींग मारना।
केवल गाल बजाने से सफलता नहीं मिल सकती, इसके लिए परिश्रम भी परम आवश्यक है।
127. गुड़-गोबर करना—काम बिगाड़ना।
कवि-सम्मेलन बड़े आनन्द से चल रहा था, श्रोता रसमग्न होकर कविताएँ सुन रहे थे कि अचानक आई तेज वर्षा ने सारा गुड़-गोबर कर दिया।
128. गूलर का फूल होना-अलभ्य वस्तु होना।
आज के युग में ईमानदारी गूलर का फूल हो गई है।
129. घड़ों पानी पड़ना-दूसरों के सामने हीन सिद्ध होने पर अत्यन्त लज्जित होना।
बहू ने जब सास का झूठ सबके सामने पकड़ लिया तो उस पर घड़ों पानी पड़ गया।
130. घर का दीपक-घर की शोभा और कुल की कीर्ति को बढ़ानेवाला।
एकमात्र पुत्र की मृत्यु पर संवेदना व्यक्त करने आए प्रत्येक व्यक्ति ने यही कहा कि उनके घर का तो दीपक ही बुझ गया।
131. घर की खेती सहज में मिलनेवाला पदार्थ।
बाल काट देने पर इतना क्यों रोते हो? यह तो घर की खेती है। कुछ दिन में फिर बढ़ जाएगी।
132. घर फूंक तमाशा देखना-क्षणिक आनन्द के लिए बहुत अधिक खर्च करना।
सेठ भोलामल का बड़ा लड़का शराब व जुए में सम्पत्ति नष्ट करके घर फूंक तमाशा देख रहा है।
133. घाट-घाट का पानी पीना–अनेक स्थलों का अच्छा-बुरा अनुभव प्राप्त करना/चालाक होना।
जिसने घाट-घाट का पानी पिया हो, उसे जीवन में कौन धोखा दे सकता है।
134. घाव पर नमक छिड़कना-दु:खी व्यक्ति के हृदय को और दुःख पहुँचाना।
परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाने पर रमेश वैसे ही दु:खी है। अब अपशब्द कहकर आप उसके घाव पर नमक छिड़क रहे हैं।
135. घाव हरा होना-भूले दुःख की याद आना।
मैं तो अपना दुःख भूल चुका था, किन्तु आज आपको वैसे ही कष्ट में देखकर मेरा घाव हरा हो गया।
136. घी के दीये जलाना-खुशी मनाना।
अपने प्रतिद्वन्द्वी की हार पर सुनील ने घी के दीये जलाए।
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137. घोड़े बेचकर सोना निश्चिन्त होना।
किशन परीक्षा समाप्त होते ही घोड़े बेचकर सोता है।
138. चम्पत होना-भाग जाना।
सिपाही को देखते ही चोर वहाँ से चम्पत हो गया।
139. चाँद पर थूकना-निर्दोष को दोष देना।
आप सत्यता के साथ अपने कार्य को कीजिए। आप पर दोष लगानेवाले स्वयं चुप हो जाएँगे। चाँद पर थूकने से उसका कुछ बिगड़ता नहीं है।
140. चूना लगाना-हानि पहुँचाना।
उसने मुझे रिश्तेदारी का हवाला दिया और मैं पिघल गया। बेबात में उसने मुझे सौ रुपये का चूना लगा दिया।
141. चाँदी काटना- अधिक लाभ प्राप्त करना।
आपास्थिति से पूर्व काले धन्धे में लगे व्यक्ति कृत्रिम कमी उत्पन्न करके चाँदी काट रहे थे। अब सभी के होश ठिकाने आ गए हैं।
142. चिकना घड़ा होना-निर्लज्ज होना। वह पूरा चिकना घड़ा है। उस पर आपकी बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
143. चिकनी-चुपड़ी बातें करना-चालबाजी से भरी मीठी बातें करना। उसकी बातों में न आना।
वह चिकनी-चुपड़ी बातें करके अपना मतलब सिद्ध करने में बड़ा चतुर है।
144. चुल्लूभर पानी में डूब मरना-अपने गलत काम के लिए लज्जा का अनुभव करना।
रमेश ने अपनी बहन की सम्पत्ति पर भी कब्जा करने की कोशिश की। जब सम्बन्धियों को पता चला तो उन्होंने उससे कहा कि जाओ, चुल्लूभर पानी में डूब मरो।।
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145. चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना-घबराहट आदि के कारण चेहरे का रंग उड़ जाना।
शहर में दंगा होने की खबर सुनकर शहर में नई आई मेघना के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।
146. चोर की दाढ़ी में तिनका वास्तविक अपराधी का बिना पूछे बोल उठना।
छात्रों ने श्यामपट पर एक कार्टून बना दिया था। अध्यापक ने उसके सम्बन्ध में छात्रों से पूछा। इसी बीच एक छात्र खड़ा होकर कहने लगा कि यह कार्टून मैंने नहीं बनाया। सब छात्र कहने लगे- “चोर की दाढ़ी में तिनका।”
147. चोली-दामन का साथ होना-घनिष्ठ अथवा अटूट सम्बन्ध।
पन्ना रूपवती स्त्री थी और रूप तथा गर्व में चोली-दामन का नाता था।
148. छक्के छुड़ाना-हिम्मत पस्त कर देना।
व्यापारमण्डल ने मेरे प्रस्ताव को स्वीकार करके मेरे विरोधियों के छक्के छुड़ा दिए।
149. छठी का दूध याद आना-घोर संकट में फँसना।
अचानक आए तूफान ने पर्वतारोहियों को छठी का दूध याद दिला दिया।
150. छठी का दूध याद कराना-बहुत अधिक कष्ट देना।
सतपाल ने अखाड़े में बड़े-बड़े पहलवानों को भी छठी का दूध याद करा दिया।
151. छाती पर मूंग दलना-अत्यन्त कष्ट देना।
माँ ने नाराज होकर बच्चों से कहा कि मेरी छाती पर ही मूंग दलते रहोगे या कुछ पढ़ोगे-लिखोगे भी।
152. छाती पर पत्थर रखना-दुःख सहने के लिए हृदय कठोर करना।
अपनी छाती पर पत्थर रखकर उसने अपना पुश्तैनी मकान भी बेच दिया।
153. छाती/कलेजे पर साँप लोटना-ईर्ष्या से हृदय जल उठना।
किसी की उन्नति की चर्चा सुनकर उसकी छाती पर साँप लोटने लगते हैं।
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164. जमीन पर पैर न रखना-बहुत अभिमान करना।
प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने के बाद उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं।
155. जहर उगलना-कठोर, जली-कटी, लगनेवाली बात कहना।
उन्हें जब देखो, तब जहर उगलते रहते हैं। उन्हें किसी की उन्नति तनिक भी नहीं सुहाती।
156. जली-कटी कहना-व्यंग्यपूर्ण बात करना।
जब देखो जली-कटी कहते रहते हो। कभी तो प्रेम के साथ बोला करो।
157. जहाज का पंछी होना—ऐसी मजबूरी होना, जिससे वही आश्रय लेने के लिए बाध्य होना पड़े।
बहुत ढूँढने पर भी मुझे कहीं स्थान नहीं मिला। जहाज के पंछी की तरह मैं फिर लौटकर वहीं आ गया।
158. जी-जान लड़ाना-बहुत परिश्रम करना।
हमने तो कार्यक्रम की सफलता के लिए जी-जान लड़ा दी, किन्तु उन्हें कोई बात पसन्द ही नहीं आती।
159. जीती मक्खी निगलना-अहित की बात स्वीकार करना।
मोहना को भली प्रकार ज्ञात था कि घर और वर दोनों उसके अनुरूप नहीं हैं, फिर भी माता-पिता की विवशता देखकर उसने जीती मक्खी को निगल लिया।
160. जोड़-तोड़ करना–दाँव-पेंचयुक्त उपाय करना।
किसी भी तरह जोड़-तोड़ करके रमेश उत्तीर्ण हो ही गया।
161. झख मारना-व्यर्थ समय गँवाना/विवश होना।
i. तुम कब से बैठे झख मार रहे हो, जाकर स्नान क्यों नहीं करते?
ii. झख मारकर उसे रुपया देना ही पड़ा।
162. टस से मस न होना—विचलित न होना।
कितनी ही विपत्तियाँ आईं, किन्तु रमेश टस से मस नहीं हुआ। अन्ततः जीत उसी की हुई।
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163. टका-सा जवाब देना-साफ इनकार करना।
मैंने कितनी ही बार उसकी सहायता की, किन्तु आवश्यकता पड़ने पर उसने मुझे टका-सा जवाब देने में तनिक भी संकोच नहीं किया।
164. टपक पड़ना-सहसा बिना बुलाए आ पहुँचना।।
अरे! अभी तुम्हारी ही बात हो रही थी, तुम एकदम कहाँ से टपक पड़े?
165. टाँग अड़ाना-दखल देना।
उसे कुछ आता-जाता तो है नहीं, किन्तु टाँग हर बात में अड़ाता रहता है।
166. टाट उलटना-दिवालिया होने की सूचना देना।
लोगों ने समय-समय पर उसकी बहुत आर्थिक मदद की, किन्तु जब लोगों ने अपनी रकम उससे माँगी तो उसने टाट उलट दिया।
167. टेढ़ी खीर-कठिन कार्य।
परीक्षा में प्रथम श्रेणी के अंक प्राप्त करना टेढ़ी खीर है।
168. टोपी उछालना-इज्जत से खिलवाड़ करना।
कैसे भी प्रिय व्यक्ति को कोई अपनी टोपी उछालने की इजाजत नहीं दे सकता।
169. ठकुरसुहाती करना/कहना-चापलूसी करना।
स्वाभिमानी व्यक्ति भूखा मर जाता है, किन्तु ठकुरसुहाती नहीं करता।
170. ठगा-सा रह जाना—चकित रह जाना।
साईं बाबा के चमत्कार देखकर मैं ठगा-सा रह गया।
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171. ठिकाने लगाना-मार डालना।
तुम्हारा मामला है, वरना उस दुष्ट को मैं कब का ठिकाने लगा देता।
172. ठोकर खाना-असावधानी के कारण नुकसान उठाना।
रमेश हमेशा सुरेश को समझाता रहता था कि यदि बुरी राह चलोगे तो ठोकर खाओगे, लेकिन सुरेश न माना।
173. डूबते को तिनके का सहारा-संकट में छोटी वस्तु से भी सहायता मिलना।
भूख के कारण उसके प्राण निकले जा रहे थे। तभी किसी ने उसे एक रोटी देकर मानो डूबते को तिनके का सहारा दिया।
174. ढाई ईंट की मस्जिद अलग बनाना-सार्वजनिक मत के विरुद्ध कार्य करना।
उससे हमारी मित्रता सम्भव नहीं है। वह सदैव ढाई ईंट की मस्जिद अलग बनाता रहता है।
175. ढिंढोरा पीटना-बात का खुलेआम प्रचार करना।
रमा के पेट में कोई बात नहीं पचती, वह तुरन्त बात का ढिंढोरा पीट देती है।
176. ढोल की पोल/ढोल के भीतर पोल—बाहरी दिखावे के पीछे छिपा खोखलापन।
ये स्वामी लोग व्याख्यान तो बहुत सुन्दर देते हैं, परन्तु उनके जीवन को निकट से देखने पर पता चलता है कि ढोल के भीतर भी पोल है।
177. तकदीर फूट जाना—भाग्यहीन होना।
युवावस्था में विधवा होने पर स्त्री की तो मानो तकदीर ही फूट जाती है।
178. तलवे चाटना-खुशामद करना। रमेश में तनिक भी स्वाभिमान नहीं है।
वह सदैव अपने अधिकारी के तलवे चाटता रहता है।
179. तिल का ताड़ करना/बनाना-छोटी-सी बात को बड़ी बनाना।
बात तो बहुत छोटी-सी थी, किन्तु उन्होंने तिल का ताड़ करके आपस में झगड़ा करा दिया।
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180. तीन-तेरह करना-गायब करना, तितर-बितर करना।
छापा पड़ने से पहले ही लालाजी ने अपने सारे कागजों को तीन-तेरह कर दिया।
181. तीन-पाँच करना-बहाना बनाना, इधर-उधर की बात करना।
सच-सच बताओ कि बात क्या है? तीन-पाँच करोगे तो अच्छा न होगा।
182. तोते के समान रहना-बात के सार को समझे बिना उसे रट लेना।
वर्तमान शिक्षा-प्रणाली छात्रों को केवल तोते के समान रटना सिखाती है।
183. थाली का बैंगन होना-पक्ष बदलते रहना।
उसकी बात पर कोई विश्वास नहीं करता। वह तो थाली का बैंगन है। कभी इस ओर हो जाता है और कभी उस ओर।
184. थूककर चाटना-त्यक्त वस्तु को पुनः ग्रहण करना, कही हुई बात पर अमल न करना।
पहले तो आवेश में तुमने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। अब उसके लिए पुनः आवेदन-पत्र देकर थूककर चाटते क्यों हो?
185. दंग रह जाना—आश्चर्यचकित होना।
बाबा के चमत्कारों को देखकर मैं तो दंग रह गया।
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186. दाँत खट्टे करना-हरा देना।
भारतीय सैनिकों ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों के दाँत खट्टे कर दिए।
187. दाँत पीसकर रह जाना-क्रोध रोक लेना।
रमेश की बदतमीजी पर पिताजी को क्रोध तो बहुत आया, किन्तु अपने मित्रों के सामने वे दाँत पीसकर। रह गए।
188. दाँतों तले उँगली दबाना-आश्चर्यचकित होना।
महारानी लक्ष्मीबाई के रणकौशल को देखकर अंग्रेजों ने दाँतों तले उँगली दबा ली।
189. दाने-दाने को तरसना-भूखों मरना।
जिन लोगों ने देश की स्वतन्त्रता के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया, उनके बच्चे आज दाने-दाने को तरस रहे हैं।
190. दाल न गलना-युक्ति में सफल न होना।
जब अधिकारी के सामने लिपिक की दाल न गली तो वह निराश होकर लौट आया।
191. दाल में काला होना-दोष छिपे होने का सन्देह होना।
पड़ोसी के घर पुलिस को आया देखकर पिता ने पुत्र से कहा-मुझे तो दाल में कुछ काला लगता है।
192. दिल बाग-बाग होना अत्यधिक प्रसन्न होना।
आपके घर की सजावट देखकर मेरा दिल बाग-बाग हो गया।
193. दिल भर आना-दुःखी होना।
जाड़े की रात में भिखारिन और उसके बच्चे को ठिठुरते हुए देखकर मेरा दिल भर आया।
194. दूध का दूध पानी का पानी-सही और उचित न्याय।।
विक्रमादित्य के राज्य में प्रजा सब प्रकार से सन्तुष्ट थी; क्योंकि उनके यहाँ दूध का दूध पानी का पानी किया जाता था।
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195. दूध की नदियाँ बहाना-दूध का जरूरत से अधिक उत्पादन करना/धन-धान्य से परिपूर्ण होना।
श्वेत क्रान्ति भी देश में दूध की नदियाँ न बहा सकी।
196. दूध की मक्खी की तरह निकाल देना-अवांछित, अनुपयोगी व्यक्ति को व्यवस्था से अलग करना।
रामसिंह ने लालाजी की जीवनभर सेवा की, किन्तु उन्होंने बुढ़ापे में उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल दिया।
197. दुम दबाकर चल देना-डरकर हट जाना। पुलिस की ललकार सुनकर चोर दुम दबाकर भाग गए।
198. देवता कूच कर जाना—अत्यन्त भयभीत हो जाना, होश गायब हो जाना।
जंगल में अचानक सिंह को अपने सामने देखकर मनमोहन के तो देवता कूच कर गए।
199. दो नावों पर पैर रखना-दो अलग-अलग पक्षों से मिलकर रहना।
जो व्यक्ति दो नावों पर पैर रखकर चलते हैं, वे ठीक मझधार में डूबते हैं।
200. दो टूक बात कहना–स्पष्ट कहना। मोहन किसी से भी नहीं डरता।
वह हर व्यक्ति के सामने उचित बात को दो टूक कह देता है।
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201. दो दिन का मेहमान होना-थोड़े दिन रहना।
वकील साहब का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। वे अब दो दिन के मेहमान हैं। इसलिए सब मिलकर उनकी सेवा करें।
202. धूप में बाल सफेद नहीं होना-अनुभवी होना।
तुम मुझे धोखा नहीं दे सकते, मेरे बाल धूप में सफेद नहीं हुए हैं।
203. नकेल हाथ में होना-नियन्त्रण अपने हाथ में होना।।
चिन्ता न करो, उसकी नकेल मेरे हाथ में है। वह तुम्हारा विरोध नहीं कर सकता।
204. नजर लग जाना—बुरी दृष्टि का प्रभाव पड़ना।
नजर लगने के भय से माताएँ अपने बच्चों के माथे पर दिठौना काजल का टीका. लगा देती हैं।
205. नजर से गिरना-प्रतिष्ठा खो देना।
कुकर्मों के प्रकट होने के बाद प्रवीण सभी की नजरों से गिर गया।
206. नदी-नाव संयोग-आश्रय-आश्रित का सम्बन्ध।
कर्मचारी के हितों के नाम पर यूनियन के नेता फैक्ट्री में तालाबन्दी की बात कर रहे हैं, अब भला कोई उनसे पूछे फैक्ट्री और कर्मचारी में नदी-नाव का संयोग होता है, फिर तालाबन्दी से कर्मचारियों का कल्याण कैसे हो सकता है।
207. नमक-मिर्च लगाना-बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना।
कुछ लोगों की आदत होती है कि वे हर बात को नमक-मिर्च लगाकर ही कहते हैं।
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208. नमकहरामी करना-कृतघ्नता करना।
यदि कोई व्यक्ति हमारी भलाई करता है तो हमें उसका कृतज्ञ होना चाहिए, किन्तु बहुत-से व्यक्ति सरासर नमकहरामी करते हैं।
209. नहले पे दहला चलना-अकाट्य दाँव चलना।
बड़ी संख्या में सवर्णों को विधानसभा-टिकट देकर सुश्री मायावती ने ऐसा नहले पे दहला चला कि उन पर दलित राजनीति करने का आरोप लगानेवाले चारों खाने चित्त हो गए।
210. नाक कटना-बेइज्जती होना।
बेटे के चोरी करते पकड़े जाने पर निखिल के पिता की नाक कट गई।
211. नाक कटने से बचाना-बेइज्जत होने से बचाना।
माता-पिता बच्चों के अन्तर्जातीय विवाह सम्बन्धों को सहज रूप में स्वीकार करके ही अपनी नाक कटने से बचा सकते हैं।
212. नाक का बाल-अत्यन्त अन्तरंग, प्रिय।
अपनी नाक का बाल बने घोटाले में फँसे विधायक को पार्टी से कैसे निकालें, मुख्यमन्त्री के सामने अब यह एक बड़ी समस्या है।
213. नाक नीची कराना–बेइज्जती कराना।
अखिल ने कार चोरी का कार्य करके समाज में अपने पिता की नाक नीची करा दी।
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214. नाक बचाना-इज्जत बचाना।
आजकल के बच्चे अपने माँ-बाप की नाक बचाए रखें, यही उनकी सबसे बड़ी सेवा और भक्ति है।
215. नाक रगड़ना-किसी बात के लिए अत्यधिक खुशामद और क्षमा-याचना करना।
रावण ने हनुमान् से कहा कि राम आकर मेरे चरणों में अपनी नाक रगड़े तो वह सीता को वापस कर देगा।
216. नाक रख लेना-इज्जत रख लेना।
मुकेश ने अपने बड़े भाई की बात मानकर उनकी नाक रख ली।
217. नाकों चने चबाना-बहुत तंग करना।
अगर हम और कहीं होते तो लोगों को नाकों चने चबवा देते।
218. नौ-दो-ग्यारह होना—गायब हो जाना।
पुलिस को आता देखकर गिरहकट नौ-दो-ग्यारह हो गए।
219. पगड़ी उछालना-बेइज्जती करना।
किसी इज्जतदार आदमी की पगड़ी उछालना इंसानियत की बात नहीं है।
220. पत्ता काटना-मामले या पद से हटा देना।
अपने मण्डल दौरे पर आई मुख्यमन्त्री ने सभी दोषी अधिकारियों का पत्ता काट दिया।
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221. पत्थर की लकीर-अमिट बात।
महापुरुषों की बातें पत्थर की लकीर के समान अटल होती हैं।
222. पर्दा डालना-दुर्गुणों को छिपाना।
बच्चे तभी बिगड़ते हैं, जब माँ-बाप उनकी गलतियों पर पर्दा डालते हैं।
223. पसीना-पसीना होना-पसीने से तर-ब-तर होना।
भयंकर गर्मी में कार्य करते हुए मजदूर पसीना-पसीना हो गया।
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224. पहाड़ टूट पड़ना—मुसीबतें आना।
राम के पिता की मृत्यु से उसके परिवार पर मानो पहाड़ टूट पड़ा।
225. पाँचों उँगली घी में होना-आनन्द-ही-आनन्द होना।
दीपक की मम्मी के आ जाने पर आजकल उसकी पाँचों उँगली घी में हैं।
226. पानी उतर जाना-इज्जत समाप्त हो जाना।
रमेश की चोरी पकड़े जाने के बाद से जनता की निगाह में उसका पानी उतर गया।
227. पानी-पानी होना–शर्मिन्दगी अनुभव होना।
दरवाजे की खटखटाहट सुनकर अंशु भीतर से ही बड़बड़ाती आई कि इन भिखारियों ने भी नाक में दम कर रखा है, किन्तु दरवाजे पर अपने ससुर को खड़ा देखकर बेचारी पानी-पानी हो गई।
228. पानी फेर देना—निराश कर देना।
अनमोल ने विद्यालय छोड़कर अपने पिता की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
229. पापड़ बेलना–कष्ट झेलना।
राम को नौकरी प्राप्त करने के लिए बड़े पापड़ बेलने पड़े।
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230. पीठ दिखाना-हारकर भाग जाना।
भारतीय सेना के सम्मुख पाकिस्तानी सिपाही पीठ दिखाकर भाग गए।
231. पेट में दाढ़ी होना—कम अवस्था में ही अधिक बुद्धिमान्/चतुर-चालाक होना।
श्याम की आयु केवल पन्द्रह साल की है, किन्तु वह अपने चाचा से राजनीति की चर्चा कर रहा था। यह देखकर वहाँ बैठे एक व्यक्ति ने कहा कि इस लड़के के पेट में तो दाढ़ी है।
232. पौ बारह होना-खूब लाभ प्राप्त होना।
आपात्काल से पहले गल्ला-व्यापारियों के पौ बारह हो रहे थे।
233. प्यासा ही कुएँ के पास जाता है—जरूरतमन्द ही अपनी जरूरत की वस्तु के स्रोत को ढूँढता हुआ उस तक पहुँचता है।
बेटा! बाजार में एक से बढ़कर एक पुस्तक उपलब्ध है; वहाँ जाना तो पड़ेगा ही; क्योंकि प्यासा ही कुएँ के पास जाता है, कुआँ स्वयं चलकर उसके पास नहीं आता।
234. प्राण हथेली पर रखना-मृत्यु के लिए तैयार रहना।
भारतीय सैनिक प्राण हथेली पर रखकर अपने शत्रुओं का सामना करते हैं।
235. फुलझड़ी छोड़ना-हँसी की बात कहना।
तुम तो बात-बात में फुलझड़ी छोड़ते हो। कभी तो गम्भीरता से बात किया करो।
236. फूटी आँखों न देखना-ईर्ष्या रखना।
अधिकतर विमाताएँ अपने सौतेले पुत्र को फूटी आँखों नहीं देख सकतीं।
237. फूला न समाना-अत्यधिक प्रसन्न होना।
अपनी प्यारी बहन मीरा के मिलने पर विमल फूला नहीं समाया।
238. बगुलाभगत होना–साधु के वेश में ठग, पाखण्डी।
आजकल अनेक लोग गेरुए वस्त्र धारण करके बगुलाभगत बने बैठे हैं।
239. बगलें झाँकना-निरुत्तर होना।
अध्यापक के प्रश्न को सुनकर तथा उत्तर समझ में न आने पर छात्रगण बगलें झाँकने लगे।
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240. बाँछे खिल जाना—प्रसन्नता से भर उठना।।
अपनी प्रोन्नति का समाचार सुनकर शशांक की बाँछे खिल गईं।
241. बाल की खाल निकालना–बारीकी से जाँच-पड़ताल करना।
मोहन का स्वभाव ऐसा ही है कि वह हर बात में बाल की खाल निकालता है।
242. बाल-बाँका न होना-कुछ भी हानि न पहुँचना।
इस मुकदमे में तुम चाहे कितना ही धन व्यय करो, किन्तु उनका बाल-बाँका नहीं हो सकता।
243. बालू की दीवार-दुर्बल आधार।
बालू की दीवार पर जीवन का महल बनाना उचित नहीं है।
244. बिजली गिरना-घोर विपत्ति आना।
सरला के जवान बेटे की मौत क्या हुई, उस पर तो मानो बिजली गिर गई।
245. बीड़ा उठाना-कोई जोखिम भरा काम करने की जिम्मेदारी लेना।
फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने युद्ध-क्षेत्र में घायलों की सेवा का बीड़ा उठाया।
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246. बे-पर की उड़ाना-झूठी बात फैलाना।
यद्यपि मीनू का परीक्षाफल नहीं आया था, किन्तु उसने अपनी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने की घोषणा करके बे-पर की उड़ा दी।
247. बे-सिर-पैर की बात करना—निरर्थक बात करना।
उन्हें काम तो कुछ है नहीं, हर समय बे-सिर-पैर की बात करते हैं।
248. बोटी-बोटी फड़कना-जोश आना।
कवि-सम्मेलन में वीर रस की कविताओं को सुनकर श्रोताओं की बोटी-बोटी फड़कने लगी।
249. भण्डा फूटना-भेद खुल जाना, रहस्य प्रकट हो जाना।
जनसभा में जब नेताजी के भ्रष्टाचार का भण्डा फूट गया तो वे चुपचाप ही वहाँ से खिसक लिए।
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250. भीगी बिल्ली बनना-भय या स्वार्थवश अति नम्र होना।
घर पर रहकर मूंछों पर ताव देनेवाले मुरलीधर कार्यालय में अपने अधिकारी के सामने भीगी बिल्ली बने रहते हैं।
251. मक्खन लगाना-चापलूसी करना।
अफसरों को मक्खन लगाना कोई शोभित से सीखे, जिसने सालभर में ही प्रोन्नति प्राप्त कर ली।
252. मक्खियाँ मारना-बेकार बैठे रहना।
जब से यहाँ आया हूँ, बैठा-बैठा मक्खियाँ मारा करता हूँ।
253. मन के मोदक खाना-काल्पनिक बातों से प्रसन्न होना।
उनके पास पैसा तो है नहीं, वे मन के मोदक खाकर ही प्रसन्न हो लेते हैं।
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254. मन खट्टा हो जाना–मन घृणा से भर जाना।
उधर तो दीपक के पिता की लाश पड़ी थी, इधर उसका छोटा भाई बँटवारे के लिए झगड़ रहा था। यह देखकर उसके प्रति दीपक का मन खट्टा हो गया।
255. मन मारकर बैठना-विवशता के कारण निराश होना।
हामिद के पास तीन पैसे थे, उनसे वह मिठाई कैसे खरीदता। बेचारा, साथियों को मिठाई खाता देख मन मारकर रह गया।
256. मन्त्र फॅकना-सफल युक्ति का प्रयोग करना।
विवेकीजी पता नहीं, अपने छात्रों में ऐसा कौन-सा मन्त्र फूंकते हैं, कि कोई भी छात्र प्रथम श्रेणी से कम उत्तीर्ण ही नहीं होता।
257. मिट्टी के मोल बिकना-अत्यन्त कम मूल्य पर बिकना।
विवश होकर प्रेमचन्दजी को अपने उपन्यास प्रकाशकों के हाथ मिट्टी के मोल बेचने पड़े।
258. मिट्टी में मिलाना–पूरी तरह नष्ट कर देना।
कुपुत्र अपने पूर्वजों के यश को मिट्टी में मिला देते हैं।
259. मुँह पर कालिख लगना-कलंक लगना।
चन्दर के बेटे के चोरी के अपराध में रंगे हाथों पकड़े जाने पर उसके मुँह पर कालिख लग गई।
260. मुँह की खाना-परास्त होना, अपमानित होना।
सतपाल से बड़े-बड़े पहलवानों ने मुँह की खाई।
261. मुँह में पानी भर आना-जी ललचाना।
मिठाइयों का नाम सुनते ही उसके मुँह में पानी भर आया।
262. मुट्ठी गर्म करना-रिश्वत देना।
लिपिक की मुट्ठी गर्म करने पर ही लाभचन्द को चीनी का परमिट मिल सका।
263. मँखें नीची हो जाना-अपमानित होना।
बेटी के साँवले दूल्हे से शादी करने से इनकार कर देने पर चौधरी की मूंछे नीची हो गईं।
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264. मूंछों पर ताव देना-शक्ति पर घमण्ड करना।
रमेश के पिता एक बाहुबली सांसद हैं; अत: वह मूंछों पर ताव दिए फिरता है।
265. मैदान मारना-सफलता/जीत प्राप्त करना।
राजेन्द्र अग्रवाल चुनाव का मैदान मारकर संसद पहुँच ही गए हैं।
266. रंग उतरना-रौनक खत्म होना।
जब से मेले में दो गुटों में झगड़ा हुआ है, मेले का रंग ही उतर गया है।
267. रंग जमाना-धाक जमाना।
किसी समय फिल्मी दुनिया में अमिताभ बच्चन ने अपना रंग जमा रखा था।
268. रंग में भंग पड़ना-आनन्द में विघ्न होना।
सिनेमाहाल में झगड़ा होने पर दर्शकों के रंग में भंग पड़ गया।
269. राई से पर्वत करना-छोटी बात को बहुत बढ़ा देना।
साम्प्रदायिक दंगों के समय समाज-विरोधी तत्त्व राई-जैसी बातों को पर्वत बनाकर अपने स्वार्थ की पूर्ति करते हैं।
270. रास्ते का काँटा बनना-मार्ग में बाधा डालना।
देश की प्रगति के रास्ते में काँटा बननेवालों को समाप्त कर देना चाहिए।
271. रोंगटे खड़े होना-भयभीत होना, हर्ष/आश्चर्य से पुलकित होना।
अनियन्त्रित बस जब पहाड़ी के किनारे एक पेड़ से रुक गई और यात्रियों ने पहाड़ी से नीचे देखा तो खाई की गहराई देखकर उनके रोंगटे खड़े हो गए।
272. लकीर का फकीर होना-पुरानी नीति पर चलना।
आधुनिक विज्ञान के युग में लकीर का फकीर होना समझदारी का प्रमाण नहीं है।
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273. लाल-पीला होना क्रोधित होना।
रामू से दूध बिखर जाने पर उसकी माँ उस पर खूब लाल-पीली हुई।
274. लुटिया डुबोना-प्रतिष्ठा नष्ट करना, काम बिगाड़ देना, कलंक लगाना।
उसने तो दस-बारह रुपये का ही नुकसान किया था, तुमने तो लुटिया ही डुबो दी।
275. लोहा लोहे को काटता है-कठोर बनकर ही कठोरता का समाधान किया जा सकता है।
कश्मीरियों ने जब अपनी सुरक्षा के लिए स्वयं हथियार उठाए, तब जाकर वहाँ कुछ शान्ति स्थापित हुई; क्योंकि वे जानते थे कि लोहा ही लोहे को काटता है।
276. लोहा लेना-साहसपूर्वक सामना करना।
हमें अपने शत्रुओं से डटकर लोहा लेना चाहिए।
277. लोहे के चने चबाना-अत्यधिक कठिन काम करना।
किसी भी व्यापार को आरम्भ करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को लोहे के चने चबाने पड़ते हैं, तब कहीं सफलता मिलती है।
278. श्रीगणेश करना-कार्य आरम्भ करना।
इस शुभ कार्य का श्रीगणेश तुरन्त कर देना चाहिए।
279. सफेद झूठ-बिल्कुल झूठ।
उसके प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने का समाचार सफेद झूठ है।
280. सिर उठाना–विरोध में खड़े होना, बगावत करना।
भगवान् श्रीकृष्ण के सम्मुख कंस जैसे अनेक दुराचारियों ने सिर उठाया, जो उनके द्वारा मार दिए गए।
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281. सिर खाना-परेशान करना।
इस समय मैं अपनी परीक्षा की तैयारी में लगा हूँ, बार-बार प्रश्न पूछकर मेरा सिर मत खाओ।
282. सिर खुजलाना-सोच में पड़ जाना, अनिर्णय की स्थिति में होना।
परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के कारण पूछे जाने पर निकेत सिर खुजलाने लगा कि क्या जवाब दे।
283. सितारा चमकना-उन्नति पर होना।।
हमारे वैज्ञानिकों के प्रयत्नों से विज्ञान के क्षेत्र में भी हमारा सितारा चमक रहा है।
284. सिर पर सवार होना-कड़ाई से निगरानी करना।
वह व्यक्ति मेरे काम को बार-बार टालता रहता है। अब तो उसके सिर पर सवार होकर ही काम करवाया जा सकता है।
285. सिर माथे पर चढ़ाना/लेना-सादर स्वीकार करना।
जुम्मन ने भरी पंचायत में खड़े होकर कहा कि मैं पंचों का हुक्म सिर माथे पर चढ़ाऊँगा।
286. सीधी उँगली से घी नहीं निकलता-बेशर्म लोगों से काम कराने के लिए कठोर टेढ़ा. होना ही पड़ता है।
लाख अनुनय-विनय के बाद भी जब सोमनाथ का फंड न मिला तो वह समझ गया कि सीधी उँगली से घी नहीं निकलनेवाला।
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287. सीधे मुँह बात न करना-अकड़कर बोलना।
सरकारी कार्यालय के लिपिक सीधे मुँह बात ही नहीं करते।
288. सौ बात की एक बात-सार तत्त्व।
सौ बात की एक बात है कि मैं आज सिनेमा नहीं जा सकता। मुझे जरूरी काम निपटाने हैं।
289. साँप-छछंदर की गति होना-दुविधा में पड़ना।
रावण के प्रस्ताव से मारीच की गति साँप-छडूंदर की-सी हो गई।
290. हथियार डाल देना-हिम्मत हार जाना, समर्पण कर देना।
कलिंग की सेना ने अन्तिम साँस रहने तक अशोक के सामने हथियार नहीं डाले।
291. हवाई किले बनाना/हवा में किले बनाना-काल्पनिक योजनाएँ बनाना।
वह बुद्धि जो हवा में किले बनाती रहती थी, अब इस गुत्थी को भी न सुलझा सकती थी।
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292. हवा से बातें करना-बहुत तेज गति से दौड़ना।
चेतक राणा के सवार होते ही हवा से बातें करने लगता था।
293. हाथ मलना-अपनी विवशता व्यक्त करना।
उसने मेरा पर्स छीना और भाग गया। मैंने बहुत शोर मचाया, किन्तु कोई भी सहायता के लिए न आया। अन्त में मैं हाथ मलता रह गया।
294. हाँ में हाँ मिलाना-चापलूसी करना।
स्वार्थी लोग अधिकारियों की हाँ में हाँ मिलाकर अपना काम निकाल लेते हैं।
295. हाथ के तोते उड़ना-अचानक किसी अनिष्ट के कारण स्तब्ध रह जाना।
अपने पुत्र के दुर्घटना में मारे जाने का समाचार सुनकर मानो गिरधर के हाथ के तोते उड़ गए।
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296. हाथ पर हाथ रखकर बैठना-निष्प्रयत्न निष्क्रिय. होना।
हाथ पर हाथ रखकर बैठने से तो किसी की समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
297. हाथ-पाँव मारना-प्रयत्न करना।
आप चाहे कितने भी हाथ-पाँव मार लें, किन्तु आपकी समस्या का समाधान बिना सुविधा-शुल्क के नहीं हो सकता।
298. हाथ-पाँव फूलना-भय से घबरा जाना।
डाकुओं को देखकर यात्रियों के हाथ-पाँव फूल गए।
299. हाथ पीले करना-विवाह करना।
कमला अपने पति की मृत्यु के पश्चात् बड़ी मुश्किल से अपनी बेटी के हाथ पीले कर सकी।
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300. हाथ को हाथ नहीं सूझना-बहुत अँधेरा होना।
हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा है, वहाँ कैसे जाऊँ?
301. हाथ मलते रह जाना-पश्चात्ताप होना।
पहले तो परिश्रम नहीं किया, अब अनुत्तीर्ण हो जाने पर हाथ मलने से क्या होता है।
302. हिलोरें मारना-तरंगित होना, उत्साहित होना।
समुद्र को हिलोरें मारते देखना सभी को आनन्दित करता है।
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303. हुक्का भरना–सेवा करना, जी हुजूरी करना।
साहब ने जब अपने मातहत से अपने विरुद्ध षड्यन्त्र रचने के विषय में पूछा तो वह गिड़गिड़ाकर बोला-साहब हमें तो उम्रभर आपका हुक्का भरना है, भला मैं आपके विरुद्ध षड्यन्त्र की बात सोच भी कैसे सकता हूँ।
304. होश ठिकाने होना-अक्ल ठिकाने होना।
आपात्काल में बड़ी-बड़ों के होश ठिकाने आ गए।
305. होश उड़ जाना—घबरा जाना।
सामने से शेर को आता देखकर शिकारी के होश उड़ गए।
लोकोक्तियाँ और उनके अर्थ – Hindi Loktokis with Meanings
1. अन्त बुरे का बुरा-बुरे का परिणाम बुरा होता है।
2. अन्त भला सो भला-परिणाम अच्छा रहता है तो सब-कुछ अच्छा कहा जाता है।
3. अन्धा क्या चाहे दो आँखें—प्रत्येक व्यक्ति अपनी उपयोगी वस्तु को पाना चाहता है।
4. अन्धी पीसे कुत्ता खाय-परिश्रमी के असावधान रहने पर उसके परिश्रम का फल निकम्मों को मिल जाता है।
5. अन्धे के आगे रोए अपने नैन खोए-जिसमें सहानुभूति की भावना न हो, उसके सामने दुःख-दर्द की बातें करना व्यर्थ है।
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6. अन्धों में काना राजा-मूों के समाज में कम ज्ञानवाला भी सम्मानित होता है।
7. अक्ल बड़ी या भैंस-शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि अधिक बड़ी होती है।
8. अधजल गगरी छलकत जाय-अधूरे ज्ञानवाला व्यक्ति ही अधिक बोलता डींगें हाँकता. है।
9. अपना पैसा खोटा तो परखनेवाले का क्या दोष-अपने अन्दर अवगुण हों तो दूसरे बुरा कहेंगे ही।
10. अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग-सबका अपनी-अपनी अलग बात करना।
11. अपनी करनी पार उतरनी-अपने बुरे कर्मों का फल भुगतना ही होता है।
12. अपने घर पर कुत्ता भी शेर होता है-अपने स्थान पर निर्बल भी अपने को बलवान् प्रकट करता है।
13. अपना हाथ जगन्नाथ-अपना कार्य स्वयं करना।
14. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता-अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता।
15. अशर्फियाँ लुटें और कोयलों पर मुहर-मूल्यवान् वस्तुओं की उपेक्षा करके तुच्छ वस्तुओं की चिन्ता करना।
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16. आँख के अन्धे गाँठ के पूरे—मूर्ख और हठी।
17. आँखों के अन्धे, नाम नयनसुख-गुणों के विपरीत नाम होना।।
18. आई मौज फकीर की दिया झोपड़ा फूंक-वह व्यक्ति, जो किसी भी वस्तु से मोह नहीं करता है।
19. आगे कुआँ पीछे खाई—विपत्ति से बचाव का कोई मार्ग न होना।
20. आगे नाथ न पीछे पगहा-कोई भी जिम्मेदारी न होना।
21. आटे के साथ घुन भी पिसता है-अपराधी के साथ निरपराधी भी दण्ड प्राप्त करता है।
22. आधी तज सारी को धाए, आधी मिले न सारी पाए-लालच में सब-कुछ समाप्त हो जाता है।
23. आप भला सो जग भला-अपनी नीयत ठीक होने पर सारा संसार ठीक लगता है।
24. आम के आम गुठलियों के दाम-दुहरा लाभ उठाना।
25. आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास-किसी महान कार्य को करने का लक्ष्य बनाकर भी निम्न स्तर के काम में लग जाना।
26. आसमान से गिरा खजूर पर अटका-एक विपत्ति से छूटकर दूसरी में उलझ जाना।
27. उठी पैंठ आठवें दिन लगती है—एक बार व्यवस्था भंग होने पर उसे पुन: कायम करने में समय लगता है।
28. उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई-निर्लज्ज बन जाने पर किसी की चिन्ता न करना।
29. उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे-अपना दोष स्वीकार न करके उल्टे पूछनेवाले पर आरोप लगाना।
30. ऊधो का लेना न माधो का देना–स्पष्ट व्यवहार करना।
31. एक और एक ग्यारह होना—एकता में शक्ति होती है।
32. एक चुप सौ को हराए-चुप रहनेवाला अच्छा होता है।
33. एक तन्दुरुस्ती हजार नियामत-स्वास्थ्य का अच्छा रहना सभी सम्पत्तियों से श्रेष्ठ होता है।
34. एक तो करेला, दूसरे नीम चढ़ा-अवगुणी में और अवगुणों का आ जाना।
35. एक तो चोरी दूसरी सीनाजोरी-गलती करने पर भी उसे स्वीकार न करके विवाद करना।
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36. एक थैली के चट्टे-बट्टे-सबका एक-सा होना।
37. एक पन्थ दो काज-एक ही उपाय से दो कार्यों का करना।
38. एक हाथ से ताली नहीं बजती-झगड़ा एक ओर से नहीं होता।
39. एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं—एक ही स्थान पर दो विचारधाराएँ नहीं रह सकतीं।
40. एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय-प्रभावशाली एक ही व्यक्ति के प्रसन्न कर लेने पर सबको प्रसन्न करने की आवश्यकता नहीं रह जाती। सबको प्रसन्न करने के प्रयास में कोई भी प्रसन्न नहीं हो पाता।
41. ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्या डर–कठिन कार्य में उलझकर विपत्तियों से घबराना बेकार है।
42. ओछे की प्रीत बालू की भीत-नीच व्यक्ति का स्नेह रेत की दीवार की तरह अस्थायी क्षणभंगुर. होता है।
43. कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर संयोगवश कभी कोई किसी के काम आता है तो कभी कोई दूसरे के।
44. कभी घी घना, कभी मुट्ठीभर चना, कभी वह भी मना-जो कुछ मिले, उसी से सन्तुष्ट रहना चाहिए।
45. करघा छोड़ तमाशा जाय, नाहक चोट जुलाहा खाय-अपना काम छोड़कर व्यर्थ के झगड़ों में फँसना हानिकर होता है।
46. कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली-दो असमान स्तर की वस्तुओं का मेल नहीं होता।
47. कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा; भानुमती ने कुनबा जोड़ा-इधर-उधर से उल्टे-सीधे प्रमाण एकत्र कर अपनी बात सिद्ध करने का प्रयत्न करना।
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48. कागज की नाव नहीं चलती-बिना किसी ठोस आधार के कोई कार्य नहीं हो सकता।
49. कागा चला हंस की चाल-अयोग्य व्यक्ति का योग्य व्यक्ति जैसा बनने का प्रयत्न करना।
50. काठ की हाँड़ी केवल एक बार चढ़ती है-कपटपूर्ण व्यवहार बार-बार सफल नहीं होता।
51. का बरसा जब कृषि सुखाने-उचित अवसर निकल जाने पर प्रयत्न करने का कोई लाभ नहीं होता।
52. को नृप होउ हमहिं का हानी—राजा चाहे कोई भी हो, प्रजा की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता। प्रजा, प्रजा ही रहती है।
53. खग जाने खग ही की भाषा–एकसमान वातावरण में रहनेवाले अथवा प्रवृत्तिवाले एक-दूसरे की बातों के सार शीघ्र ही समझ लेते हैं।
54. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है—एक का प्रभाव दूसरे पर पड़ता है।
55. खोदा पहाड़ निकली चुहिया-अधिक परिश्रम करने पर भी मनोवांछित फल न मिलना।
56. गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास-देश-काल-वातावरण के अनुसार स्वयं को ढाल लेना।
57. गुड़ न दे, गुड़ जैसी बात तो करे–चाहे कुछ न दे, परन्तु वचन तो मीठे बोले।
58. गुड़ खाए, गुलगुलों से परहेज-किसी वस्तु से दिखावटी परहेज।
69. घर का भेदी लंका ढावै-अपना ही व्यक्ति धोखा देता है।
60. घर का जोगी जोगना,आन गाँव का सिद्ध-गुणवान् व्यक्ति की अपने स्थान पर प्रशंसा नहीं होती।
61. घर की मुर्गी दाल बराबर-घर की वस्तु का महत्त्व नहीं समझा जाता।
62. घर खीर तो बाहर खीर-यदि व्यक्ति अपने घर में सुखी और सन्तुष्ट है तो उसे सब जगह सुख और सन्तुष्टि का अनुभव होता है।
63. घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने-झूठी शान दिखाना।
64. घी कहाँ गिरा, दाल में व्यक्ति का स्वार्थ के लिए पतित होना।
65. घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या-संकोचवश पारिश्रमिक न लेना।
66. घोड़े को लात, आदमी को बात-घोड़े के लिए लात और सच्चे आदमी के लिए बात का आघात असहनीय होता है।
67. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए-लालची होना।
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68. चलती का नाम गाड़ी—जिसका नाम चल जाए वही ठीक।
69. चादर के बाहर पैर पसारना—हैसियत क्षमता. से अधिक खर्च करना।
70. चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात-सुख क्षणिक ही होता है।
71. चिड़िया उड़ गई फुरै-अभीष्ट व्यक्ति अथवा वस्तु का प्राप्ति से पूर्व ही गायब हो जाना/मृत्यु हो जाना।
72. चिराग तले अँधेरा-अपना दोष स्वयं को दिखाई नहीं देता।
73. चोर-चोर मौसेरे भाई-समाजविरोधी कार्य में लगे हुए व्यक्ति समान होते हैं।
74. चूहे का जाया बिल ही खोदता है-बच्चे में पैतृक गुण आते ही हैं।
75. चोरी का माल मोरी में जाता है—छल की कमाई यों ही समाप्त हो जाती है।
76. छछून्दर के सिर पर चमेली का तेल-कुरूप व्यक्ति का अधिक शृंगार करना।
77. जल में रहकर मगर से बैर-अधिकारी से शत्रुता करना।
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78. जहाँ चाह वहाँ राह—इच्छा, शक्ति से ही सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
79. जहाँ देखी भरी परात, वहीं गंवाई सारी रात-लोभी व्यक्ति वहीं जाता है, जहाँ कुछ मिलने की आशा होती है।
80. जाके पाँव व फटी बिबाई, सो क्या जाने पीर पराई—जिसने कभी दुःख न देखा हो, वह दूसरे की पीड़ा दुःख. को नहीं समझ सकता।
81. जिसकी लाठी उसकी भैंस-शक्तिशाली की विजय होती है।
82. जिस थाली में खाना उसी में छेद करना-कृतघ्न होना।
83. जैसे कंता घर रहे वैसे रहे विदेश–स्थान परिवर्तन करने पर भी परिस्थिति में अन्तर न होना।
84. जैसा देश वैसा भेष—प्रत्येक स्थान पर वहाँ के निवासियों के अनुसार व्यवहार करना।
85. जैसे नागनाथ वैसे साँपनाथ-दो नीच व्यक्तियों में किसी को अच्छा नहीं कहा जा सकता।
86. जो गरजते हैं बरसते नहीं-अकर्मण्य लोग ही बढ़-चढ़कर डींग मारते हैं। अथवा कर्मनिष्ठ लोग बातें नहीं बनाते। .
87. ढाक के वही तीन पात-कोई निष्कर्ष हल. न निकलना।
88. तबेले की बला बन्दर के सिर—एक के अपराध के लिए दूसरे को दण्डित करना।
89. तीन लोक से मथुरा न्यारी-सबसे अलग, अत्यन्त महत्त्वपूर्ण।
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90. तीन में न तेरह में, मृदंग बजावे डेरा में किसी गिनती में न होने पर भी अपने अधिकार का ढिंढोरा पीटना।
91. तुम डाल-डाल हम पात-पात-प्रतियोगी से अधिक चतुर होना। अथवा प्रतियोगी की प्रत्येक चाल को विफल करने का उपाय ज्ञात होना।
92. तुरत दान महाकल्याण-किसी का देय जितनी जल्दी सम्भव हो, चुका देना चाहिए।
93. तू भी रानी मैं भी रानी, कौन भरेगा पानी—सभी अपने को बड़ा समझेंगे तो काम कौन करेगा।
94. तेली का तेल जले, मशालची का दिल-व्यय कोई करे, दुःख किसी और को हो।
95. तेल देख तेल की धार देख–कार्य को सोच-विचारकर करना और अनुभव प्राप्त करना।
96. थोथा चना बाजे घना-कम गुणी व्यक्ति में अहंकार अधिक होता है।
97. दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते-मुफ्त की वस्तु का अच्छा-बुरा नहीं देखा जाता।
98. दाल-भात में मूसलचंद-किसी कार्य में व्यर्थ टाँग अड़ाना।
99. दिन दूनी रात चौगुनी-गुणात्मक वृद्धि।
100. दीवार के भी कान होते हैं रहस्य खुल ही जाता है।
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101. दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम-दुविधाग्रस्त व्यक्ति को कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
102. दूर के ढोल सुहावने होते हैं—प्रत्येक वस्तु दूर से अच्छी लगती है।
103. धोबी का कुत्ता घर का न घाट का-लालची व्यक्ति कहीं का नहीं रहता/लालची व्यक्ति लाभ से वंचित रह ही जाता है।
104. न तीन में, न तेरह में महत्त्वहीन होना, किसी काम का न होना।
105. न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी-झगड़े की जड़ काट देना।
106. नाच न जाने/आवै आँगन टेढ़ा-काम न आने पर दूसरों को दोष देना।
107. नाम बड़े, दर्शन छोटे-प्रसिद्धि के अनुरूप निम्न स्तर होना।
108. न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी-न इतने अधिक साधन होंगे और न काम होगा।
109. नीम हकीम खतरा-ए-जान-अप्रशिक्षित चिकित्सक रोगी के लिए जानलेवा होते हैं।
110. नौ नकद न तेरह उधार-नकद का विक्रय कम होने पर भी उधार के अधिक विक्रय से अच्छा है।
111. नौ दिन चले अढ़ाई कोस-धीमी गति से कार्य करना।
112. नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली—जीवनभर पाप करने के बाद बुढ़ापे में धर्मात्मा होने का ढोंग करना।
113. पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखा कुदरत का खेल-भाग्यवश योग्य व्यक्ति द्वारा तुच्छ कार्य करने के लिए विवश होना।
114. बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी-विपत्ति अधिक समय तक नहीं टल सकती।
115. बगल में छोरा, नगर में ढिंढोरा-वाँछित वस्तु की प्राप्ति के लिए अपने आस-पास दृष्टि न डालना।
116. बड़े मियाँ सो बड़े मियाँ छोटे मियाँ सुभानअल्लाह-छोटे का बड़े से भी अधिक धूर्त होना।
117. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद-मूर्ख व्यक्ति गुणों के महत्त्व को नहीं समझ सकता।
118. बाप ने मारी मेंढकी, बेटा तीरंदाज-कुल-परम्परा से निम्न कार्य करते चले आने पर भी महानता का दम्भ भरना।
119. बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना-अचानक कार्य सिद्ध हो जाना।
120. भइ गति साँप छछून्दति केरी-दुविधा की स्थिति।
Muhavren Evm Lokoktiyan
121. भरी जवानी में माँझा ढीला-युवावस्था में पौरुष उत्साह.हीन होना।
122. भागते भूत की लँगोटी भली-न देनेवाले से जो भी मिल जाए, वही ठीक है।
123. भूखे भजन न होय गोपाला-भूखे पेट भक्ति भी नहीं होती।
124. भैंस के आगे बीन बजाना-मूर्ख के आगे गुणों का प्रदर्शन करना व्यर्थ होता है।
125. मन चंगा तो कठौती में गंगा-मन के शुद्ध होने पर तीर्थ की आवश्यकता नहीं होती।
126. मरे को मारे शाहमदार राजा से लेकर धूर्त तक सभी सामर्थ्यवान् कमजोर को ही सताते हैं।
127. मान न मान मैं तेरा मेहमान-जबरदस्ती गले पड़ना।
128. मुँह में राम बगल में छुरी-कपटपूर्ण व्यवहार।
129. मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक-प्रत्येक व्यक्ति अपनी पहुँच के भीतर कार्य करता है।
130. यथा नाम तथा गुण-नाम के अनुरूप गुण।
131. यथा राजा तथा प्रजा-जैसा स्वामी वैसा सेवक।
132. रस्सी जल गई ऐंठ न गई-अहित होने पर भी अकड़ न जाना।
Muhavren Evm Lokoktiyan
133. राम नाम जपना पराया माल अपना-धर्म का आडम्बर करते हुए दूसरों की सम्पत्ति को हड़पना।
134. लातों के भूत बातों से नहीं मानते-नीच बिना दण्ड के नहीं मानते।
135. लाल गुदड़ी में भी नहीं छिपते—गुणवान् हीन दशा में होने पर भी पहचाना जाता है।
136. शौकीन बुढ़िया चटाई का लहँगा-शौक पूरे करते समय अपनी आर्थिक स्थिति की अनदेखी करना।
137. साँच को आँच नहीं सत्यपक्ष का कोई भी विपत्ति कुछ नहीं बिगाड़ सकती/सत्य की सदैव विजय होती है।
138. साँप निकल गया लकीर पीटते रहे कार्य का अवसर हाथ से निकल जाने पर भी परम्परा का निर्वाह करना।
139. साँप भी मरे और लाठी भी न टूटे-काम भी बन जाए और कोई हानि भी न हो।
140. सावन हरे न भादों सूखे-सदैव एक-सी स्थिति में रहना।
141. सावन के अन्धे को सब जगह हरियाली दिखना-स्वार्थ में अन्धे व्यक्ति को सब जगह स्वार्थ ही दिखता है।
142. सिर मुड़ाते ही ओले पड़ना—कार्य के आरम्भ में ही बाधा उत्पन्न होना।
143. सूरज को दीपक दिखाना-सामर्थ्यवान को चुनौती देना; ज्ञानी व्यक्ति को उपदेश देना।
144. हंसा थे सो उड़ गए, कागा भए दिवान–सज्जनों के पलायन कर जाने पर सत्ता दुष्टों के हाथ में आ जाती है।
145. हमारी बिल्ली हमीं को म्याऊँ-पालक पालनेवाले. के प्रति विद्रोह की भावना रखना।
146. हल्दी/हर्र लगे न फिटकरी, रंग चोखा आए-बिना कुछ प्रयत्न किए कार्य अच्छा होना।
147. हाथ कंगन को आरसी क्या-प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।
148. हाकिम की अगाड़ी, घोड़े की पिछाड़ी-विपत्ति से बचकर ही निकलना चाहिए।
149. हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और-कपटी व्यक्ति कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं।
150. हाथी के पाँव में सबका पाँव-ओहदेदार व्यक्ति की हाँ में ही सबकी हाँ होती है।
151. होनहार बिरवान के होत चीकने पात-प्रतिभाशाली व्यक्ति के लक्षण आरम्भ से ही दिखने लगते हैं।
152. हाथी निकल गया, दुम रह गई—सभी मुख्य काम हो जाने पर कोई मामूली-सी अड़चन रह जाना।
153. होइहि सोइ जो राम रचि राखा-वही होता है, जो भगवान् ने लिखा होता है।