NSE के टिक साइज़ घटाने से क्या होगा फायदा
(NSE KE TICK SIZE GHATANE SE KYA HOGA FAYDA )
NSE टिक साइज़ बदलाव
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने 250 रुपये से कम मूल्य वाले सभी शेयरों के लिए न्यूनतम मूल्य अंतर (टिक साइज़) को एक पैसा करने का फैसला किया है। वर्तमान में टिक साइज़ 5 पैसा है। यह नया नियम 10 जून से प्रभावी हो जाएगा। इस बदलाव से न केवल लिक्विडिटी बढ़ेगी, बल्कि मूल्य समायोजन भी बेहतर होगा। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) ने पिछले साल ही ₹100 से नीचे कारोबार वाले शेयरों के लिए टिक साइज़ को 5 पैसे से घटाकर एक पैसा कर दिया था।
टिक साइज़ क्या है?
टिक साइज़ दो लगातार खरीद और बिक्री मूल्यों के बीच का न्यूनतम मूल्य अंतर है। अगर टिक साइज़ छोटा है, तो मूल्य समायोजन अधिक सटीक होता है, और इससे बेहतर मूल्य निर्धारण संभव होता है। NSE ने एक सर्कुलर में कहा है कि ₹250 से कम मूल्य वाली सभी प्रतिभूतियों (ETF को छोड़कर) का टिक साइज़ 0.01 रुपये होगा, जबकि वर्तमान में यह 0.05 रुपये है। T+1 निपटान के लिए निर्धारित टिक साइज़ T+0 निपटान के लिए भी लागू होगा।
छोटा टिक साइज़ क्यों?
टिक साइज़ उस न्यूनतम मूल्य अंतर को दर्शाता है, जिससे किसी शेयर का मूल्य बढ़ या घट सकता है। यह शेयर मूल्य की सबसे छोटी कदम है। उदाहरण के लिए, यदि किसी शेयर का टिक साइज़ 0.05 पैसे है, तो इसका मूल्य न्यूनतम 0.05 पैसे की बढ़ोतरी या कमी से ही बदल सकता है।
छोटा टिक साइज़ मूल्य निर्धारण प्रक्रिया को अधिक सटीक बनाने में मदद करता है। जब टिक साइज़ छोटा होता है, तो शेयर का मूल्य छोटे-छोटे अंतरों से बदलता है, जिससे मूल्य का निर्धारण बेहतर ढंग से हो सकता है और वास्तविक मांग-आपूर्ति के अनुरूप अधिक सटीक मूल्य प्राप्त किया जा सकता है।
NSE ने स्पष्ट किया है कि प्रत्येक महीने के अंतिम कारोबारी दिन के समापन मूल्य के आधार पर टिक साइज़ पर विचार किया जाता है। इसका अर्थ है कि टिक साइज़ शेयर के मूल्य पर निर्भर करता है और निर्धारित अवधि में शेयर के मूल्य के आधार पर इसे समायोजित किया जाता है।
क्या होंगे बदलाव?
कैपिटल मार्केट सेगमेंट में बदलाव के अलावा, NSE ने डेरिवेटिव (F&O) सेगमेंट में भी संशोधन की घोषणा की है। सर्कुलर के अनुसार, वायदा शेयरों में वही टिक साइज़ होगा जो 8 जुलाई से नकदी बाजार में प्रतिभूतियों के लिए लागू होता है। इसके अलावा, टिक साइज़ में संशोधन सभी समाप्ति तिथियों के लिए लागू होगा।
क्यों किया गया है बदलाव?
मास्टर कैपिटल सर्विसेज के अरविंद सिंह नंद का कहना है कि इस निर्णय से लिक्विडिटी में बढ़ोतरी, अच्छे मूल्य निर्धारण को बढ़ावा और नई ट्रेडिंग रणनीतियों को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है। हालांकि, इससे ऑर्डरों की बड़ी संख्या के कारण सिस्टम लोड भी बढ़ सकता है।
कम कीमत वाले शेयरों पर होगा असर
जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के आनंद जेम्स ने कहा कि कम टिक साइज़, खासकर कम मूल्य वाले शेयरों में अधिक स्थिरता लाने की दिशा में एक कदम हो सकता है, क्योंकि बाजार में अस्थिरता बढ़ने की उम्मीद है और VIX (अस्थिरता सूचकांक) लगातार 20 से ऊपर जा रहा है। ऐसे में यह एक अच्छा कदम है।
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) भारत की प्रमुख शेयर बाजार है। इसकी स्थापना वर्ष 1992 में हुई थी और यह मुंबई में स्थित है। NSE एक स्वतंत्र, स्वनियामक संस्था है जिसका संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
NSE की प्रमुख विशेषताएं:
- यह पूरी तरह से कंप्यूटरीकृत है और उच्च गति वाला ट्रेडिंग सिस्टम प्रदान करता है।
- यह सबसे बड़ा डेरिवेटिव एक्सचेंज है और वायदा तथा विकल्प अनुबंधों का व्यापक ब्रेडथ प्रदान करता है।
- NSE पर नैशनल स्टॉक एक्सचेंज निफ्टी इंडेक्स सूचकांक कारोबार होता है जो भारतीय शेयर बाजार का प्रमुख बेंचमार्क माना जाता है।
- स्वाभाविक रूप से इलेक्ट्रॉनिक पोर्टफोलियो प्रबंधन और इंटरनेट आधारित ट्रेडिंग जैसी सुविधाओं के साथ NSE ने देश के शेयर बाजारों को आधुनिकीकृत किया है।
- NSE पर देश के प्रमुख कॉर्पोरेट घरानों के शेयरों का कारोबार होता है और यहां उच्च लिक्विडिटी और कम दलाली शुल्क मिलता है।