हिन्दी वर्णमाला (Hindi Alphabets ) / Hindi Varnmala
हिन्दी वर्णमाला की परिभाषा – किसी भी भाषा की अभिव्यक्ति ध्वनियों के माध्यम से जानने को मिलती है। जब हम जो बोलते हैं उसे ध्वनि कहा जाता है। इसी के माध्यम से हम अपने विचारों और भावनाओं को प्रकट करते हैं और सामने वाले व्यक्ति तक पहुंचाते हैं। भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि या वर्ण होता है। वर्णों के समूह को अक्षर कहते है। सभी वर्णो के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं।
हिन्दी वर्णमाला मे वर्णों य अक्षरों की संख्या
हिन्दी वर्णमाला (Hindi Varnamala) में कुल 52 वर्ण होते हैं जिसमे 11 स्वर, 2 आयोगवाह (अं, अः), 33 व्यंजन , 2 उत्क्षिप्त व्यंजन (ड़, ढ़), 4 संयुक्त व्यंजन (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र)। हिंदी वर्णमाला में पहले स्वर वर्ण तथा बाद में व्यंजन वर्ण की व्यवस्था है। भिन्न-भिन्न प्रकार से हिन्दी वर्णमाला में वर्णों की संख्या निम्न है-
मूल या मुख्य वर्ण – 44 (11 स्वर, 33 व्यंजन)- “अं, अः, ड़, ढ़, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र” को छोड़कर।
• उच्चारण के आधार पर कुल वर्ण 45 (10 स्वर, 35 व्यंजन) “क्र, अं, अः, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र” को छोड़कर।
• लेखन के आधार पर वर्णों की संख्या 52 (11 स्वर, 2 आयोगवाह, 39 व्यंजन)
• मानक वर्णों की संख्या – 52 (11 स्वर, 2 आयोगवाह, 39 व्यंजन)
. कुल वर्णों की संख्या – 52 (11 स्वर, 2 आयोगवाह, 39 व्यंजन)
नोट – मूल या मुख्य वर्णों की संख्या चवालीस (44) है तथा उच्चारण के आधार पर वर्णों की संख्या पैतालीस (45) है
स्वर वर्ण (Swar Varn )
जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से या बिना रुकावट के या बिना अवरोध के किया जाये और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक हों वे स्वर कहलाते है। हिन्दी वर्णमाला में स्वर संख्या में कुल 13 हैं- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ अं, अः।
स्वरों का वर्गीकरण
1. मात्रा / उच्चारण के आधार पर स्वर के भेद या प्रकार (Matra Ke Adhar Par Swar Ke Bhed)
हिन्दी वर्णमाला में मात्रा या उच्चारण आधार पर स्वर के तीन भेद होते हैं- १. हस्व स्वर, २. दीर्घ स्वर, ३. प्लुत स्वर। मात्रा का अर्थ ‘उच्चारण करने में लगने वाले समय’ से होता है।
हस्व स्वर (Hrasva Swar)
जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं उन्हें हस्व स्वर कहते हैं। इनमें मात्राओं की संख्या 1 होती है। हस्व स्वर हिन्दी में चार हैं- अ, इ, उ, क्र। ह्रस्व स्वर को छोटी स्वर या एकमात्रिक स्वर या लघु स्वर भी कहते हैं।
दीर्घ स्वर (Deergh Swar)
जिन स्वरों के उच्चारण में हस्व स्वर से दुगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। इनमें मात्राओं की संख्या 2 होती है। दीर्घ स्वर हिन्दी में सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। दीर्घ स्वर को बड़ा स्वर या द्विमात्रिक स्वर भी कहते हैं।
प्लुत स्वर (Plut Swar)
जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। प्रायः इनका प्रयोग दूर से बुलाने, पुकारने या चिंता-मनन करने में किया जाता है। जैसे आऽऽ, ओ३म्, राऽऽम आदि। इनकी कोई निश्चित संख्या नहीं होती है। किन्तु कुछ भाषाविद इनकी संख्या 8 निर्धारित करते हैं।
महत्वपूर्ण बिंदु (Important Point)
- मूल स्वरों को ही शांत स्वर या स्थिर स्वर भी कहते हैं। इनकी कुल संख्या 4 है- अ, इ, उ, ऋ।
संधि स्वरों की कुल संख्या 7 है। संधि स्वर को दो भागों में विभाजित किया जाता है- १. दीर्घ सजातीय या सवर्ण या समान स्वर, २. संयुक्त या विजातीय या असवर्ण या असमान स्वर । - दीर्घ सजातीय या सवर्ण या समान स्वर – इन्हें सवर्ण या समान स्वर कहते हैं। इनकी कुल संख्या 3 है- आ, ई, ऊ।
संयुक्त या विजातीय या असवर्ण या असमान स्वर – इन्हें असवर्ण या असमान स्वर कहते हैं। इनकी कुल संख्या 4 है- ए, ऐ, ओ, औ। - दीर्घ स्वरों की संख्या 7 होती है।
दीर्घ सजातीय स्वरों की कुल संख्या 3 होती है।
विजातीय स्वरों की कुल संख्या 4 होती है। - वर्णमाला मे जीभ के स्पर्श से उच्चारित होने वाले स्वर को तीन भागों में बाँटते हैं- १. अग्र स्वर, २. मध्य स्वर, ३. पश्च स्वर।
अग्र स्वर
जिन स्वरों का उच्चारण जीभ के अग्र भाग से होता है उन्हें अग्र स्वर कहते हैं। इनकी कुल संख्या 4 है। ये स्वर निम्न हैं – इ, ई, ए, ऐ।
मध्य स्वर
जिन स्वरों का उच्चारण जीभ के मध्य भाग से होता है उन्हें मध्य स्वर कहते हैं। इनकी कुल संख्या 1 है। ये स्वर निम्न है – आ
पश्च स्वर
जिन स्वरों का उच्चारण जीभ के पश्च भाग से होता है उन्हें पश्च स्वर कहते हैं। इनकी कुल संख्या 5 है। ये स्वर निम्न है – आ, उ, ऊ, ओ, औ।
व्यंजन वर्ण (Vyanjan Varn )
जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता है उन्हें व्यंजन वर्ण कहते हैं। अर्थात व्यंजन बिना स्वरों की सहायता के नहीं बोले जा सकते है। हिन्दी वर्णमाला में व्यंजन की कुल संख्या 39 हैं- क ख ग घ ङच छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ; ढ़ श्रा
व्यंजन शब्द “वि + अंजन” (यण संधि) से मिलकर बना है। यहाँ वि का अर्थ ‘सा’ और अंजन का अर्थ ‘जुड़ना’। अर्थात साथ में जुड़ना; जैसे – क् + अ = का अर्थात स्वर की सहायता से जिन वर्णों का उच्चारण किया गया, वह वर्ण व्यंजन कहलाता है। हिन्दी वर्णमाला में व्यंजन वर्ण के मूल एवं मुख्य तीन भेद हैं – स्पर्श, अंतःस्थ, ऊष्म।
व्यंजन के भेद (Vyanjan Ke Bhed)
1 स्पर्शीय व्यंजन या वर्गीय व्यंजन
2 अन्तःस्थ व्यंजन
3 उष्म व्यंजन या संघर्षी व्यंजन
1. स्पर्शीय व्यंजन या वर्गीय व्यंजन (Sparsheey Vyanjan)
इन वर्णों का उच्चारण करते समय मुख के किसी ना किसी भाग से स्पर्श अवश्य होता है। इसलिए इन्हें स्पर्शीय व्यंजन कहा जाता हैं। स्पर्श होने वाले व्यंजन वर्णों को जब पांच भागों या वर्गों में बाँटा जाता है, इन्हें वर्गीय व्यंजन के नाम से भी जाना जाता है।
हिन्दी वर्णमाला में मूल स्पर्शीय व्यंजन वर्णों की संख्या 16 है। कुल स्पर्शीय व्यंजन वर्णों की संख्या 25 है।
वर्गीय व्यंजन (Vargeej Vyanjan)
1 क वर्ग – क ख ग घ ड़ (उच्चारण स्थान – कंठ)
2. च वर्ग – च छ ज झ ञ (उच्चारण स्थान – तालू)
3. ट वर्ग – ट ठ ड ढ ण (उच्चारण स्थान – मूर्धा)
4. त वर्ग – त थ द ध न (उच्चारण स्थान – दन्त)
5. प वर्ग – प फ ब भ म (उच्चारण स्थान – ओष्ठय)
2. अन्तःस्थ व्यंजन (Antasth Vyanjan)
जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण करनें में वायु का अवरोध कम होता है उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन कहते हैं। इन व्यंजनों की कुल संख्या 4 (य, र, ल, व) है।
अर्द्ध स्वर या संघर्षहीन
इन ध्वनियों के उच्चारण में उच्चारण अवयवों में कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता तथा श्वासवायु अनवरोधित रहती है। हिन्दी वर्णमाला में (य, व) अर्धस्वर हैं।
लुंठित/प्रकंपित व्यंजन
हिन्दी वर्णमाला में केवल ‘र’ लुंठित प्रकंपित व्यंजन है। कंपन के साथ उच्चारण करते समय जीव्हा की स्थिति गोल बनती है, इसलिए इसे लुंठित प्रकंपित व्यंजन कहते है। जैसे – राजा ।
पार्श्विक व्यंजन
हिन्दी की वर्णमाला में केवल ‘ल’ व्यंजन पाश्विक है। उच्चारण करते समय जीभ के दोनों तरफ से वायु का निष्कासन होता है, इसलिए इसे पाश्विक व्यंजन कहते हैं। जैसे- लालू, कालू आदि।
3. उष्म व्यंजन या संघर्षी व्यंजन (Ushm Vyanjan)
जिन वर्णों का उच्चारण अत्यधिक संघर्ष के साथ ज्यादा ऊष्मा का प्रयोग हो तब वह व्यंजन ऊष्म या संघर्षी व्यंजन कहलाता है। हिन्दी वर्णमाला में उष्म व्यंजन या संघर्षी व्यंजन वर्णों की संख्या 4 (श, ष, स, ह) चार है।
महत्वपूर्ण बिंदु (Important Point)
- नुक़्ता व्यंजन – ड़, ढ़, के नीचे जो बिंदु है उसे नुक्ता कहते हैं,जैसे कि ‘ढ़’ मूल देवनागरी वर्णमाला में नहीं था और न ही यह संस्कृत में पाया जाता है।
- आगत व्यंजन – इनकी मूल संख्या 5 (क़ ख़ ग़ ज़ फ़) तथा कुल संख्या 6 (अ, क, ख, ग, ज़, फ़) है।
- द्वित्व व्यंजन – जब किसी भी शब्द में एक ही व्यंजन दो बार आये एक पूर्ण हो दूसरा आधा हो, उसे द्वित्व व्यंजन कहते हैं। द्वित्व व्यंजन में अधिकतर तीन अक्षर निर्मित शब्द ही आते हैं। जैसे पत्ता, बच्चा, कुत्ता, बिल्ली, दिल्ली, रसगुल्ला, इत्यादि।
आयोगवाह (Aayogwah)
अयोगवाह हमेशा स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं होता है, क्यूंकि यह स्वयं में अयोग्य है; सिर्फ साथ चलने में सहयोगी है। हिन्दी वर्णमाला में इसके दो रूप होते हैं- १. अनुस्वार, २. विसर्ग ।
अनुस्वार (Anuswar)
अनुस्वार हमेशा स्वर के बाद आता है। व्यंजन वर्ण के बाद या व्यंजन वर्ण के साथ अनुस्वार और विसर्ग का प्रयोग कभी नहीं होता है; क्यूंकि व्यंजन वर्णों में पहले से ही स्वर वर्ण जुड़े होते हैं। जैसे – कंगा, रंगून, तंदूर।
अनुस्वार की संख्या 1 है – अं। इसमें ऊपर लगी हुई बिंदु का अर्थ आधा “न्” होता है।
विसर्ग (Visarg)
विसर्ग हमेशा स्वर के बाद आता है। विसर्ग का उच्चारण करते समय “ह / हकार” की ध्वनि आती है। इनकी भी संख्या एक है – अः।
विसर्ग प्रयुक्त सभी शब्द संस्कृत अर्थात तत्सम शब्द माने जाते हैं जैसे स्वतः, अतः, प्रातः, दुःख, इत्यादि।
Note Point :-अनुस्वार और विसर्ग लेखन की दृष्टि से स्वर और उच्चारण की दृष्टि से व्यंजन होते हैं। इन दोनों का योग ना ही स्वर के साथ होता है और नाही व्यंजन के साथ, इसीलिए इन्हें ‘आयोग’ कहते हैं, फिर ये एक अलग अर्थ का वहन करते हैं, इसीलिए “आयोगवाह” कहलाते हैं।
अनुनासिक (Anunasik)
हिन्दी वर्णमाला में अनुनासिक वर्ण दो प्रकार के होते हैं – 1. चंद्र / स्वनिम चिन्ह ( ॉ ) , 2. चन्द्रबिन्दु (ँ)
Note Point :- अनुनासिक और अनुस्वार में अंतर – अनुनासिक स्वर है और अनुस्वार मूल रूप से व्यंजन है। इनके प्रयोग के कारण कुछ शब्दों के अर्थ में अंतर आ जाता है। जैसे – हंस (एक जल पक्षी), हँस (हँसने की क्रिया)।
पंचमाक्षर (Panchmakshar ) :- वर्णमाला के प्रत्येक वर्ग के पांचवें वर्णों के समूह को ‘पंचमाक्षर या पञ्चमाक्षर‘ कहते हैं। देवनागरी में पंचमाक्षर की कुल संख्या 5 ( ङ, ञ, ण, न, म) है।
पंचमाक्षर से निर्मित शब्द जिन्हें अनुस्वार के स्थान पर प्रयोग किया गया है गङ्गा गंगा, दिनाङ्क – दिनांक, पञ्चम- पंचम, चञ्चल – चंचल, कण्ठ कंठ, कन्धा कंधा, कम्पन – कंपन आदि।
Note Point :- अनुस्वार का प्रयोग पंचम वर्ण (इ, ञ, ण, न, म्– ये पंचमाक्षर कहलाते हैं) के स्थान पर किया जाता है।
सयुंक्त व्यंजन (Sanyukt Vyanjan)
जहाँ भी दो अथवा दो से अधिक व्यंजन मिल जाते हैं वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं, किन्तु देवनागरी लिपि में संयोग के बाद रूप-परिवर्तन हो जाने के कारण इन चार को गिनाया गया है। ये दो-दो व्यंजनों से मिलकर बने हैं। जैसे-
1. क्ष = क् + ष
2. त्र = त्+र
3. ज्ञ = ज्+ञ
4. श्र = श्+र
Note Point :- कुछ लोग क्ष, त्र, ज्ञ, श्र को भी हिन्दी वर्णमाला में गिनते हैं, पर ये संयुक्त व्यंजन हैं, अतः इन्हें वर्णमाला में गिनना उचित प्रतीत नहीं होता।
हिन्दी वर्णमाला के वर्णों का उच्चारण स्थान (Varnmala Ke Varno Ka Uchcharan Sthan)
- कण्ठ्य – क ख ग घ ङ ह अ आ अः
- तालव्य – च छ ज झ ञ य श इ ई
- मूर्धन्य – ट ठ ड ढ ण ष र
- दन्त्य – त थ द ध न ल स ल्र्
- ओष्ठ्य – प फ ब भ म उ ऊ
- दन्तोष्ठ – व
- अनुनासिक – ङ ञ ण न म
अघोष (Aghosh)
हिंदी वर्णमाला के स्पर्श व्यंजन के प्रत्येक वर्ग (क च ट त प) के प्रथम एवं द्वितीय व्यंजन, अघोष व्यंजन कहलाते है। जैसे – क ख च छ ट ठ त थ प फ
घोष / सघोष (Ghosh / Saghosh)
प्रत्येक वर्ग के तृतीय, चतुर्थ एवं पंचम व्यंजन, घोष व्यंजन कहलाते है। जैसे – ग घ ङ ज झ ञ ड ढ ण द ध न ब भ म
अल्पप्राण (Alppran)
प्रत्येक वर्ग के प्रथम , तृतीय , पंचम व्यंजन ,अल्पप्राण व्यंजन कहलाते है। जैसे – क ग ङ च ज ञ ट ड ण त द न प ब म
महाप्राण (Mahapran)
प्रत्येक वर्ग के द्वितीय एवं चतुर्थ व्यंजन, महाप्राण व्यंजन कहलाते है। जैसे – ख घ छ झ ठ ढ थ ध फ भ
हिन्दी वर्णमाला में कितने वर्ण होते हैं?
Important Point – वर्णों को व्यवस्थित करने के समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी में उच्चारण के आधार पर 52 वर्ण होते हैं। इनमें 11 स्वर और 41 व्यंजन होते हैं। लेखन के आधार पर 56 वर्ण होते हैं इसमें 11 स्वर , 41 व्यंजन तथा 4 संयुक्त व्यंजन होते हैं।
हिंदी में कुल 39 व्यंजन होते हैं, जिसमें 33 व्यंजन मानक हिंदी व्यंजन होते हैं, चार संयुक्त व्यंजन (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र ) होते हैं और दो उत्क्षिप्त व्यंजन होते हैं। ssc books
हिन्दी वर्णमाला मे क से तक ज्ञ 36 अक्षर होते हैं।
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